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कैसी ये दिल की अभिलाषा!

मेरा मन !
मेरा मन !
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ये कैसी दिल की अभिलाषा,
क्यों है मन प्यासा प्यासा !
घनघोर तिमिर में खोज रहा,
सुहाने सुबह की कैसी आशा !
पतझर है खड़ा सिरहाने पर ,
पर आशा बसंत के छाने पर !
फिर से कोयल कूकेगी बागों में,
छाएगी नवजीवन की अभिलाषा !
मेरा व्याकुल मन ये सोच रहा ,
नव उमंग के तारो को जोर रहा !
कह रहा है मुझसे धीर धरो ,
पूरी होगी दिल की हर आशा!
ये कैसी दिल की अभिलाषा ,
क्यों है मन प्यासा प्यासा !
एक नई सुबह फिर आएगी ,
घनघोर तिमिर ये जाएगी !
फैलेगा दिन का उजियारा ,
जीवन होगा प्यारा प्यारा !

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