मेरा मन !
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जल जाने दो उस बस्ती को,जहाँ सब मुरदे रहते है!
आखे तो खुली रहती है,लेकिन आसू नही गिरते है!!
क्यों रोये उस बस्ती पर जहाँ बस लाशें ही रहती है !
अन्दर अन्दर सब जलता है,बहार खुशियाँ होती है!
इन राख के सूखे ढेरो पर,मिटटी के मुरदे पुतलो पर!
क्यों शोक मनाये हम उनपर ,जो मरे हुए से जीते है!
न आन कोई न मान कोई ,न है इनका इमान कोई!
धन के इन भूखे लोगो का ,न है स्वाभिमान कोई!
बद्दर है जो हैवानो से,संतान है जो शैतानो के!
एइसे जंगली इंसानों के,मरने पर शोक मनाये क्यों?
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