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वैसे लिखना तो आता नहीं मुझे!और न ज्यादा समझदार ही हु! लेकिन कभी कभी कुछ मन में आ जाता है!बस वही लिख देता हु!अगर किसी को ठेस पहुचे तो माफ़ी!
न्यूज़ चैनल या न्यूज़ पेपर देखने की आदत तो कब का ख़त्म हो गया है!वैसे भी बड़ा बोरिंग होता है!कुछ नयापन रहता तो हैं नही न्यूज़ में! बस वही आइटम न्यूज़ सब!कोई रेप,,कोई घोटाला,,कही पर हत्या तो कही बलात्कार! इस से ज्यादा आजकल हो ही नहीं सकता कोई समाचार!
कल आचनक हेडिंग पर नजर गयी तो देखा हमरे मौनी बाबा,घोटालो के सरताज,बेसरम लाजार इस देश के बेबस कर्णधार को सरम आ रही थी!बड़ा अजीब सा लगा इस नंगे आदमी को अब सरम क्यों होती है! चलो जो हो देर आये दुरुस्त आया कुछ तो होगा! यही सोच कर चैन से न्यूज़ पढने लगा!तो पता चला मनुभाव को शर्म इसलिए आ रही थी की अभी तक बेसरमी की सारी हदे नहीं टूटी है!आखिर ये स्वखोसित लोकतान्त्रिक जमींदारो की सभा में होने वाले हो हल्ले से परेसान थे!नौटंकियो को संविधानिक जमा तो पहनाने का मौका मिले!वैसे भी अब चुनाव आने वाला है!इस देश की 1२० कड़ोड़ बेजान गाय-भैसों को सपने दिखाने का वक़्त आ गया है!
वैसे तो अपनी तरफ से महोदय ने कोई भी मौका नहीं गवाया जब दुनिया हम पर न हसे!सबसे पहले तो इनकी हाव- भाव देखकर ही हसी आ जाती है!बचपन में हमलोग कठपुतली नाच देखते थे!बस पूरा वही कठपुतली वाला हाव-भाव लिए होते है हमरे सबसे बेईमान इमानदार पुरुष!हसी खुद बी खुद आ जाती है जब इनका दीदार हो जाये!
याद आती है इनके बोल वचन !! याद आती ई इनके कर्म!आप अगर किसी को गाली दे सकते हो तो इतना पक्का यकीं कर लो सरदार जी की कैबिनेट में मंत्री बन जाओगे!अगर किसी को सरेआम धमका सकते हो तो प्रोमोसन!और अगर इमानदारी की बात कर ली कभी गलती से तो समझो गये तो इस गली से!यहाँ सच की जगह हो ही नहीं सकती क्योकि ये तो कोयले में लिपटे उजले खादी की दुनिया है!जहा का क्यादा कानून काले को ही उजला समझता है!”अंधेर नगरी चौपट रजा टेक सेर भाजी टेक सेर खाजा”.कहने वाला सायद एइसे ही किसी रजा को देख कर बोला होगा!
वैसे भी सरम हमें हो क्यों?ये तो हमारे खून में ही नहीं है!सदियों से हम बेसरमी का मिशाल कायम करते आये है!याद कीजिये अपने अतीत को जरा झाकिये इतिहास के पन्नो में!सब नजर आ जायेगा!आज भी क्या है!कुर्सी मिल जाये और धन आ जाये चाहे कितना भी बेसरम हो जाना परे!वैसे भी ये शर्म चीज क्या है!क्या मिलता है इस से!
अब देखिये पौंड के लोभ में हमारी कितनी ही सती-सवित्रियाँ ८० की दसक में लन्दन एअरपोर्ट पर नंगी होकर गैर मर्दों के सामने अपने कुवारी नहीं होने का सबुद देती थी!क्या हो जाता था!अरे इसमे शर्म कैसा!पौंड सब शर्म धो देता था!अबी अमेरिका जाने की चाह में कितने नंगे होते थे!चलता है! ये शर्म से कुछ होता ही नहीं है!बस मन को बहलाने की चीज है!दुनिया हँसती है तो हसने दीजिये!खुद ही थक कर चुप हो जाएगी!
परेसान मत होहिये इस देश के बेशर्मो के सम्राट ! अगर आप को शर्म आ गया तो बड़ी मुस्किल होगी!
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