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अतिथी तुम आ जाना !!!

मेरा मन !
मेरा मन !
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मन में उठे तरंगो को,शब्दों में पिरो मै देता हूँ!
सीधे सपाट लहजे मन की व्यथा मै कहता हूँ!
न प्रतिक्रिया की चाह मुझे न प्रसिद्धि की लालसा है!
न महान होने की मृगतृष्णा न नाम पाने की आशा है!!

कमल सा कोमल मन मेरा ह्रदय प्रेम का अनुरागी!
सागर के ठहरे पानी सा मै कवि बैरागी सन्यासी!!
न साहित्य का ज्ञान मुझे न मै व्याकरण का ज्ञाता!
न तो कोई गुरु मेरा न कोई मार्ग प्रसस्तिकर्ता!!

मनोभाव पढ़ लेता हूँ मैं सूखे ताल तलैयों का!
मन की ब्यथा समझ लेता हूँ उजरे बाग बगीचों का!!
ह्रदय में झाँख कर देख लेता हूँ दर्द उन व्याकुल चेहरों का!
महसूस दर्द मै कर लेता हूँ सजल आद्र दुखभरे नैनों का!!

अनकहे प्रश्न उन व्याकुल चेहरों का दुःखभरी कथा उन सजल नयनो का!
भयावहता उन उजड़े बागों का सुनहरी अतीत उन सूखे तालों का!!
बस इतना ही तो मै लिखता हूँ उन्हीं को शब्दों में कहता हूँ!
मेरे भावो को समझ सके हे सुधिजन बस इतनी मेरी अभिलाषा !!

हे!अतिथी हार्दिक अभिनन्दन है,मेरे मन का वंदन है!
मेरे शब्दों की दुनियाँ में जरा दो पल तुम ठहर जाना!!
एक बार मेरे शब्दों को फिर से तुम दुहरा जाना!
अच्छा लगे तो दो चार शब्द वहीँ पर तुम भी लिख देना!!

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